Thursday 28 September 2017

डर है मुझे

मन में सिमटे से हैं कुछ ख्वाब
डर है मुझे कहीं कोई बवाल न लिख दूँ
व्यवहार कुछ बदला हुआ है मेरा
डर है मुझे कहीं कोई बिखरा ख्याल न लिख दूँ
खामोश थी मैं काफी वकत से
डर है कहीं आज किसी पे कोई इल्ज़ाम न लिख दूँ