पता नही आज क्यों मैं परेशान हूं
बोलने को ज़ुबां है फिर भी बेज़ुबान हूं
क्यों भूल रही हूं मैं कि मैं एक इनसान हूं
शायद दिमाग से नही अपने दिल से अनजान हूं
बोलती हूं कम पर सोचती बेहिसाब हूं
सवालों से हूं भरी पर कोरे पन्नों की किताब हूं
हाल ठीक हैं बाहर से पर अन्दर से बेहाल हूं
शायद अपने इस हाल की मैं खुद जिम्मेंदार हूं
बोलने को ज़ुबां है फिर भी बेज़ुबान हूं
क्यों भूल रही हूं मैं कि मैं एक इनसान हूं
शायद दिमाग से नही अपने दिल से अनजान हूं
बोलती हूं कम पर सोचती बेहिसाब हूं
सवालों से हूं भरी पर कोरे पन्नों की किताब हूं
हाल ठीक हैं बाहर से पर अन्दर से बेहाल हूं
शायद अपने इस हाल की मैं खुद जिम्मेंदार हूं
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