Tuesday 23 January 2018

पता नही

पता नही आज क्यों मैं परेशान हूं
बोलने को ज़ुबां है फिर भी बेज़ुबान हूं
क्यों भूल रही हूं मैं कि मैं एक इनसान हूं
शायद दिमाग से नही अपने दिल से अनजान हूं
बोलती हूं कम पर सोचती बेहिसाब हूं
सवालों से हूं भरी पर कोरे पन्नों की किताब हूं
हाल ठीक हैं बाहर से पर अन्दर से बेहाल हूं
शायद अपने इस हाल की मैं खुद जिम्मेंदार हूं 

Attachments area

No comments: