दिमाग में चलता था ख्यालों का मुज़ाहरा
पर ज़ुबान पे खामोशी और दिल में तनहाई थी
यूं ही नही बेचे हमने अपने सपनों के घरौंदे
टूटी थी उमीदें जो हमने दूसरों पे लगाईं थी
खाबों के सफ़र ने हर कदम पर आज़माया हमें
कभी कभी बढ़ा ली हसरतें कभी कभी दबाईं भी
दूःख नही बस खुद पे अफ़सोस है कि
न हमें कभी चैन मिला न कभी खुशी दिखाई दी---!!
पर ज़ुबान पे खामोशी और दिल में तनहाई थी
यूं ही नही बेचे हमने अपने सपनों के घरौंदे
टूटी थी उमीदें जो हमने दूसरों पे लगाईं थी
खाबों के सफ़र ने हर कदम पर आज़माया हमें
कभी कभी बढ़ा ली हसरतें कभी कभी दबाईं भी
दूःख नही बस खुद पे अफ़सोस है कि
न हमें कभी चैन मिला न कभी खुशी दिखाई दी---!!
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