Wednesday 27 June 2018

उमीद का दामन

जैसे जैसे लम्हें फिसलते गए
जीने के तकाज़े और ज़्यादा मिलते गए
हकीकत के फूल बस सपनों में खिलते रहे
मंज़िल के कदमों को हम उँगलियों पर गिनते रहे

हम दुनिया के लिए जब से फिज़ूल होते गए
हमें राह में काँटे भी तब से कबूल होते गए
जैसे रफता रफता लोग हमसे दूर होते गए
वैसे वैसे हम भी खुद में मग़रूर होते गए

भले ही ख्वाबों के सवेरे पल पल ढलते रहे
मगर थाम कर उमीद का दामन
हम अन्धेरे में भी चलते रहे
कुछ मेरे साथ था मेरा जुनून
और कुछ हौसलों के चिराग जलते गये
न तो बदले हम, न बदला अपना असूल
पर बदलता गया वक्त
और कुछ लोग भी बदलते गए

कंधों पर कई बोझ थे भारी
पर चलते रहना भी ज़िद्द थी हमारी
ज़िन्दगी की धूप में हम नंगे पाँव फिरते रहे
न जाने क्यों रास्तों के आगे
नये रास्ते निकलते रहे
नये रास्ते निकलते रहे.....!!!
                                            SoniA#

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