Tuesday 7 November 2017

मेरे अपनो में से चंद लोग ही अपने हैं


आज सूरज भी वही और आसमान भी वही
मगर वो बीता हुआ कोई भी नज़ारा नहीं 
कभी सपना था मेरा सबसे जुड़ कर रहने का 
मगर आज ऐसा कोई सपना हमारा नहीं 
लोग हैसीयत देखकर दोस्ती निभाते हैं 
जिसकी हैसीयत नही उसका कोई सहारा नही
जो मेरी दोस्ती को अपनी हैसीयत से आँके 
ऐसे लोगों के लिए मेरे दिल में कोई ठिकाना नही 
नये दोस्त बनाने का हमें शौंक नही 
और जो याद रह सके एसा कोई दोस्त पुराना नही
मेरे अपनो में से चंद लोग ही अपने हैं 
बाकी गैरों से मेरा कोई याराना नही

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