जो गुज़र गया वो बीता हुआ कल हैै
जो आने वाला है वो मेरा भृम है
अपने ग़म की महफिलों को
बड़ी सुकूँ से टालती हुँ
क्योंकि अब मैं वहम नही
सपने पालती हुँ
अपनी एक मंज़िल तय कर रखी है मैने
जिसे पाने के लिए मैं
लोगों का एहसान नही
बस रब का साथ माँगती हुँ
कोई फर्क नही पड़ता कि
मेरे मुकद्दर में क्या लिखा है
पर जो भी लिखा है
कुछ बहतर ही लिखा है
बस इतना जानती हुँ
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