Saturday 4 November 2017

रुकना गवारा नही इन कदमों को


जिन रास्तों पे चलने की हिम्मत नहीं 

आखिर उन्हीं रास्तों को 
मेरे कदम चुनते क्यों हैं 
ज़िन्दगी में कई मोड़ ऐसे आते हैं
जिस और कदम अपने आप मुड़ते ज़रूर हैं 
निगाहों को मंज़िल का इन्तज़ार है
और पाँव चलने में मगरूर हैं
चलते चलते इतनी दूर आ गए
अब तो उंगलियाँ भी पूछने लगी हैं कि
मंज़िल अभी और कितनी दूर है 
रुकना गवारा नही इन कदमों को
माना सफ़र थोड़ा लम्बा ज़रूर है 
ज़रूर कुछ खास लिखा है मेरी किस्मत में 
तभी तो कदमों को काँटे भी मंज़ूर हैं

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