उस नज़र से मत देख ज़माने को
जिस नज़र से वो तुम्हे देखता है
कोशिश कर यह जानने की कि
तेरे मन को तुझसे क्या अपेक्षा है
मत कर यकीन ज़माने की बातों पे
यह ज़माना तो बस यूं ही फेकता है
क्यों तु अपना ईमान
शरेआम ज़माने में बेचता है
बन कर गुनाहगार क्यों तु भी
गुनाहगारों के आगे घुटने टेकता है
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