Friday 10 November 2017

क्या गैर क्या अपने

नही करती यकीन मैं लोगों के खोखले दाअवो पे 
फिर ऐसे कैसे मैं दूनियाँ से अपनी उमीदें जोड़ लूं
आखिर लोगों की झूठी उमीद के भरोसे पे 
मैं अपनी खुशियाँ कैसे छोड़ दू 
बड़ी मुशिकल से जोड़े हैं मैने अपने जज़बातों के टुकड़े 
फिर इतनी आसानी से मैं उन्हें दौबारा कैसे तोड़ दू 
क्या गैर क्या अपने सब ने मुझ से मूंह मोड़ा है 
ज़रूरत के वक्त मुझे अकेला छोड़ा है 
क्यों न अब मैं भी उनसे उनकी तरह मुंह मोड़ लूं

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