नही करती यकीन मैं लोगों के खोखले दाअवो पे
फिर ऐसे कैसे मैं दूनियाँ से अपनी उमीदें जोड़ लूं
आखिर लोगों की झूठी उमीद के भरोसे पे
मैं अपनी खुशियाँ कैसे छोड़ दू
बड़ी मुशिकल से जोड़े हैं मैने अपने जज़बातों के टुकड़े
फिर इतनी आसानी से मैं उन्हें दौबारा कैसे तोड़ दू
क्या गैर क्या अपने सब ने मुझ से मूंह मोड़ा है
ज़रूरत के वक्त मुझे अकेला छोड़ा है
क्यों न अब मैं भी उनसे उनकी तरह मुंह मोड़ लूं
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