Saturday 23 December 2017

चलने के तकाज़े ही कम थे

मेरा दिल ज़रा वफादारी का महुताज़ था, 
पर ज़माने को मेरी इसी बात से एतराज़ था,
ज़िन्दगी थी ख़फा कुछ नसीब भी नाराज़ था,
ग़लती मेरी नही बस थोड़ा वक्त ही खराब था---

थी चाहत में मासुमियत और मिजाज़ थे नरम से,
खुश रहना सीखा चाहे दिल में हज़ार ग़म थे,
मेरी खवाहिशें भी आज़माती रहीं मुझे हर कदम पे,
राहें थी तमाम पर चलने के तकाज़े ही कम थे---

दर्द ब्याँ न हो जाए इसीलिए मैने लबों को सी लिया,
बहने से पहले ही हर आँसू मेरी आँखों ने पी लिया,
ग़म में हसना और तनहाई में रोना सीख लिया, 
खो कर आवाज़ मैने खामोशी को जीत लिया---

पर अब जाकर समझा है दिल कुछ ऐसे॰॰॰

जैसे सूरज था जो सदियों पहले आज भी वही है,
वैसे ही मजबूत रखने होंगे इरादे इन्हें बदलना नही है,
माना मुकाम हैं अलग और मंज़िलें भी नईं हैं,
अब मुझे ही चुननी है वो राहें जो मेरे लिए सही हैं--!!

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