चाहे हद से ज़्यादा घाव हों सीने में
फिर भी उन घावों को छुपाना पड़ता है
आँसू आँख से न झलक जाएं कहीं
इसीलिए इन्हें दिल में बहाना पड़ता है
कोई निगाहों से न पढ़ ले मेरा दर्द
तभी तो निगाहों को झुकाना पड़ता है
अपने जब ग़ैर होने लग जाएं
तब अपने जज़बातों को दफनाना पड़ता है
कहाँ रखता है कोई अपनेपन का एहसास
जहां तो लोगों को
रिश्तों को भोज़ समझ कर निभाना पड़ता है
फिर भी उन घावों को छुपाना पड़ता है
आँसू आँख से न झलक जाएं कहीं
इसीलिए इन्हें दिल में बहाना पड़ता है
कोई निगाहों से न पढ़ ले मेरा दर्द
तभी तो निगाहों को झुकाना पड़ता है
अपने जब ग़ैर होने लग जाएं
तब अपने जज़बातों को दफनाना पड़ता है
कहाँ रखता है कोई अपनेपन का एहसास
जहां तो लोगों को
रिश्तों को भोज़ समझ कर निभाना पड़ता है
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