Monday 21 May 2018

याद कर बैठे

न जाने क्यों गुज़रा वक्त
हम आज फिर याद कर बैठे
तब दिल और दिमाग भी
आपस में तक्रार कर बैठे
जब अकेले मे हम इनसे
दर्द का इज़हार कर बैठे
सोचते ही सोचते खुद से
शिकवे हज़ार कर बैठे
दिल-ए-नादान के कुछ पहलू
हम यूंही ब्याँ कर बैठे
बीते दिनों की परछाई तले
खुद से हम मुलाकात कर बैठे
मंजिल के बनने से टूटने तक का
पूरा सफ़र हम सवार कर बैठे
रुलाया था कभी जिस बात ने हमें
देखो आज फिर उसी बात की
हम बात कर बैठे
न जाने क्यों वो गुज़रा वक्त
हम आज फिर याद कर बैठे....!!!!!!!!
                         SoniA#

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