Sunday 29 October 2017

कमज़ोरी है मेरी

लोग कहते हैं कि मैं
अपनी हसी के पिछे
हर ग़म छुपा लेती हुँ
गिली होने से पहले ही
अपनी पलकों को सुखा लेती हुँ
अरे यह कोई हुनर नही
बलकि कमज़ोरी है मेरी
जो याद आने से पहले ही
लोगों से खाए धोखे को भुला देती हुँ
खुद ही कम हो जाता है दरद जब
बीते लमहों का सफ़र
मैं अपनी शायिरी में सुना देती हुँ
हर बार रोई हुँ
हर उस चीज़ को खोकर
जिसे कुछ हद् से ज्यादा ही
मैं चाह लेती हुँ
बस खुश रहे हर वो शख्स
जो मुझसे जुड़ा है
अपने दिल से मैं सबको
यही दुआ देती हुँ

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